Wednesday, 10 April 2013

MEIN BHI LIKH SAKTA THA (में भी लिख सकता था)..........


An answer to those peoples and such friends, who frequently ask me to write some Romantic Poetry in place of heroic poetry & poems showing Pathetic Sentiment.                                                              
"I hope these lines are enough to express my feelings & answer, why i write only heroic & Pathetic Sentiment type poetry".


यूँ, तो में भी तन  की सुरभि पर जाने क्या - क्या लिख सकता था
में भी गा सकता था गीत मेघ - मल्हारों के
में भी लिख सकता था गीत ग़जल श्रृंगारों  के ||१||

में भी महकते यौवन की अभिलाषा लिख सकता था
में भी सतरंगी सपनो को गा सकता था शब्दों में
में भी हाथों की मेहँदी और आँखों के काजल पर लिख सकता था. ||२||

लेकिन मैंने माँ भारती का आँचल हर पल दुखो से भरा देखा है
कितनी ही आँखों का काजल भी मैंने, हर पल आंसू के संग घुलते देखा है. ||३||

इसलिए, में अपने शब्दों की लावा को आग बनाकर गाता हूँ
इसलिए में कविता को अपना हथियार बनाकर गाता हूँ. ||४||



       BY:-


                                     ********MEGHVRAT  ARYA********




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