विख्यात साइकलोजिस्ट "कार्ल मार्क्स" के अनुसार मनुष्य मूलतः तार्किक प्राणी है. "वह पहले संदेह करता है और बाद में विश्वास". पर शायद भारतीय मन को कार्ल मार्क्स के इस नियम का अपवाद कहा जा सकता है, विशेष रूप से धर्म, आस्था और बाबाओं के मामले में. भारतवर्ष को साधू और महात्माओं का देश अकारण ही नहीं कहा जाता रहा है. सचमुच यहाँ साधू और बाबाओं पर लोग बड़ी आसानी से श्रद्धा और विश्वास कर लेते है. इसलिए यहाँ बाबागिरी का धन्दा अच्छा खासा चलता है. अनेकों लोग यहाँ टीवी और मार्केटिंग की लचर नीतियों का फायदा उठाकर आस्था और श्रद्धा का खुला व्यापार करते हैं. क्योंकि भारतीय भाग्यवादी समाज में ज्यादातर लोगों को समस्याओं का सीधे खुलकर सामना करने, और उनका हल खोजने के बजाय बाहरी आश्वासन और सांत्वना की आवश्यकता होती है. इसलिए वे कृपा और आशीर्वाद के पीछे भागते हैं. भारतीय लोगों की इसी सोच के चलते बाबाओं और तांत्रिकों का धन्दा चलता है. वर्तमान उदाहरण एक तीसरी आँख वाले ब्रांडेड बाबा (निर्मल बाबा) का है. तथाकथित तीसरी आंख वाले ये चम्पू बाबा "निर्मलजीत सिंह नरूला" जो अपने पूरे जीवनकाल में स्वयं कभी सफल नहीं हो पाए, अपनी तीसरी आंख से लोगों का भविष्य देखकर उसे सुधारने का दावा करते हैं. तीसरी आंख वाले ये चम्पू बाबा आर्थिक और मानसिक रूप से हार चुके लोगों की भावनाओं का फायदा उठाकर उन्हें उल्टे सीधे उपाय बताकर आस्था और कृपा के नाम पर करोड़ों रूपये की काली कमाई करते हैं. यद्यपि उनके उपाय भी तर्क और प्रमारिकता की कसोटी पर कहीं नहीं टिकते क्योंकि एक सामान्य मानसिक स्तर का व्यक्ति भी जनता है कि कैसे समोसे या गोलगप्पे खाने से उसका व्यापार बढ़ सकता है, कैसे गधे को घास खिलाने से, कुत्ते के बिस्किट खाने से कृपा बरस सकती है या महंगे पर्स, मोबाइल और चम्पू बाबा के अकाउंट में पैसे जमा करने से आपका प्रोमोसन हो सकता है. लेकिन फिर भी लाखों अंधभक्त ऐसे बाबाओं के चंगुल में फँस जाते हैं और हर बार लुटने और ढगे जाने के बाद ही उनकी आंखें खुलती है. पानी एक निश्चित ताप १०० *C पर गर्म होने के बाद ही भाप में बदलता है. हो सकता है कुछ साधू महात्माओं में तपश्चर्या का ताप रहा हो. लेकिन कुछ अभी १००*C के मानबिंदु (पूर्ण आत्मविकास) पर नहीं पहुँच सके हैं. उनके कृत्य और क्रियाकलाप बताते हैं कि वो भी अभी अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं और एश्वर्य के मकड़जाल में फंसे हुए हैं. आज भारतीय भाग्यवादी समाज को धन, धर्म, श्रद्धा और आस्था कि हानि से बचने के लिए आवश्यक है कि वे ऐसे बाबाओं से सतर्क रहे और उनका पूर्णतया सामाजिक बहिस्कार करें. चाहे फिर वो तीसरी आंख वाले निर्मल बाबा हों या पॉल धिनाकरण और सईद नाइक जैसे अन्य धर्मों के बाबा जो लोगों को धर्म और आस्था के नाम पर ठगने के साथ साथ गरीब और आदिवासी भारतीयों को पैसे व अनेकों झूठे प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन तक करा रहें हैं.............
.................मेघव्रत आर्य.................
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