Tuesday, 29 May 2012

BHRASTACHAR SE SANGHARSH(भ्रष्टाचार से संघर्ष).....

भारत जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था
कोहिनूर जिसे स्वयं सुशोभित करता था
जिसकी माटी को दुनिया में अर्घ्य चढ़ाया जाता था
जिसकी माटी पर सभ्यता ने खोली थी सबसे पहले अपनी आँखें
वह भारत!! जिसकी गौरवगाथा स्वयं हिमालय गाता है
डूब गया भ्रष्टाचार की गहरी खायी में
आज देश की गौरवगाथा रोती है, मरघट की तन्हाई में
इसीलिए में शब्दों को अपना हथियार बन कर निकला हूँ
में भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ !!१!!

इसीलिए में देश की भोली जनता को दर्शन दिखलाने निकला हूँ
 भ्र्स्ताचारियों  का नामों निशान मिटाने निकला हूँ
यू .पी में तडपा है, बचपन जिनके काले कृत्यों से
बिहार में खा गए जो पशुओं तक के चारे को
जिन्होंने बेच दिया शहादत के भी ताबूतों को
 लोकतंत्र के सीने को जिसने छलनी कर डाला है
जनता के पैसे को जिसने पत्थर का बुत बना डाला है
जिन्होंने देश को दुनिया में शर्मसार किया है
देश के सीने में जिसने राष्ट्रमंडल, 2G घोटाले का घाव किया है
में उन भ्रष्टचारियों को उनके अंजाम तक पहुँचाने निकला हूँ
में भ्रस्टाचार से पीड़ित जनता के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ!!२!!

आज देश में आतंकियों की मौत पर आंसू बहाया जाता है
संतों को गाली और मानवता के हत्यारे ओसामा को "ओसामा जी" कहा जाता है
जो शहीदों की शहादत को भी जाति-धर्म से तोल रहे हैं
अफजल-कसाब को तिहाड़ में निरंतर बर्गर-पिज्जा खिला रहे हैं
जो आरक्षण बढा-बढाकर अछम विषमता बाँट रहे हैं
निजी वोट-बैंक के लिए अल्पसंख्यकों का रोना रोकर जो नित संविधान को पहाड़ रहे हैं
जिन्होंने संसद की गरिमा को घायल सौ-सौ बार किया है
संसद को अपनी चौपाल बना दिया है
में उन गद्दारों को संसद के बाहर खदेड़ने निकला हूँ
इसीलिए में अपने शब्दों के तीखे वारों से जनता की चेतना जाग्रत करने निकला हूँ
आज नहीं जो तुम जागे, तो फिर कब जागोगे??
बचपन है तड़पता, लाचारी के आंसू रोता, 

यौवन है, सिसकता लाचारी के आंसू रोता, यही कहता फिर कब जागोगे??
यही समय है, भ्रस्ताचार से लड़ने का,
भारत को इस पीड़ा से मुक्त करने का 
देश के नौजवानों को में यही बताने निकला हूँ 
में भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ!!३!!

देश के अतीत में तुम झांको, फिर उसके वर्तमान को निहारो
तब देश की क्या पहचान थी, ये तुम पहचानो
भारत की क्या शान थी ये तुम पहचानो  
क्या कहती है जनता, क्या कहता है कुपोषित बचपन ये तुम पहचानो 
उनकी रोती हुए आवाजों को पहचानो 
चीख-चीखकर, बिलख-बिलखकर जो कहती हैं में वही सुनाने निकला हूँ 
में भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ!!४!!

जिसने भारत को नंगा कर डाला है 
तिरंगे के स्वाभिमान को भी जिसने धूमिल कर डाला है 
में उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाने निकला हूँ 
बेरोजगारी, भुखमरी, देश में फैली अराजकता चीख-चीखकर तुमसे ये कहती है
भ्रष्ट व्यवस्था परिवर्तित कर डालो,
रामदेव-अन्ना के सपनो का भारत नया रच डालो 
तुम वंशज वीर शिवा के हो, तुम्हें ये स्मरण कराने निकला हूँ  
तुम्हें तुम्हारे शौर्य पराक्रम का एहसास कराने निकला हूँ 
में भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ!!५!!


             

                        BY:-     ................मेघव्रत आर्य................






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