मथुरा के प्रसिद्ध तकनिकी शिक्षण संस्थान बी एस ए कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेकनोलोजी से लगभग ५० कदम पहले में हमेशा एक वृद्ध महिला को सड़क के किनारे बैठे देखा करता था. लम्बी बीमारी से ग्रसित कड़ाके की ढंड में कंपकपाता शरीर, चेहरे पर गहन दुःख, उदासीनता के भाव, सफ़ेद बाल और अनेकों दुखों में आंसू बहाकर लगभग दृष्टीविहीन नेत्र कुछ यही व्यकतित्व था उस वृद्ध महिला का, जिसके पास न तो सर छुपाने के लिए कोई छत थी और न ही तन ढकने के लिए पर्याप्त कपडे. उसके पास सिर्फ एक फटी सी धोती थी जिससे वो अपने तन को ठीक से ढक भी न पाती थी. वही सडक के किनारे की उथली जमीन उसका बिस्तर थी और मीलों मील फैला आसमान उसकी चादर. भूख प्यास की तो जैसे उसे कोई सुध ही न थी. न जाने किस आस में लगभग रोशनी खो चुकी उसकी आँखें सड़क पर आते जाते लोगों और वाहनों को एकटक निहारती रहती थीं. पता नहीं क्यों उसके निकट से गुजरने वाले लोगों की आहट अचानक कभी उसे इतना प्रसन्न और व्याकुल क्यों कर देती थी. अनेकों चिन्ताओं और बिमारियों से जर्जर अपने बूढ़े शरीर के बावजूद भी वह न जाने क्यों मथुरा की सड़कों पर ख़ाक छानते हुए सड़क के किनारे और सड़क पर पड़े केले के छिलके, पानी की खाली बोतलें और पॉलीथीन इत्यादी चुनती रहती थी जैसे यही सब उसकी दिनचर्या में शामिल थे. उसको इतनी बार करीब से देखने और उसके मन में छिपे गहन दर्द को महसूस करने के बाद भी, में अभी तक उसका वास्तविक नाम नहीं जानता था परन्तु सुबह-सुबह स्कूल जाने वाले बच्चे उसे उसकी इन्ही आदतों के कारण मैड वूमेन (पागल औरत) कहकर चिड़ाते थे यहाँ तक की हमारे समाज के बड़े और संभ्रांत लोग भी उसे समय समय पर मैड वूमेन कहकर त्रिस्क्रित करते थे. किन्तु अन्तः करण को झकझोर देने वाले इन सभी विश्लेषणों से लापरवाह वह अपनी ही दिनचर्या में व्यस्त रहती थी. लोगों के मन में जो आया उसे कहा लेकिन कभी किसे न यह जानने का प्रयास नहीं किया की एक महिला मैड वूमेन कैसे बनी. काफी सोचने विचारने के बाद एक दिन मैंने उसके पास जाकर उससे उसके बारे में पूछ ही लिया. पहले तो उसने मुझे कई बार अनसुना कर दिया , लेकिन मेरे कई बार आग्रह करने पर उस तथाकथित मैड वूमेन के मन में छिपे असंख्य दुखों का ज्वालामुखी उसकी आँखों से आंसुओं के रूप में शखलित हो उठा. उसके बताने पर मुझे ज्ञात हुआ की उस कथित मैड वुमन का वास्तविक नाम "स्मृति" था. एक ऐसी स्मृति जिसके मन में छुपी अनेकों अच्छी और दर्दनाक बुरी यादों का एक विशाल संग्रह अब तक विस्मृत नहीं हो पाया था, उसके बताने पर और उसे करीब से देखने के बाद मुझे अचानक ही स्मरण हुआ की स्मृति (मैड वूमेन) वही महिला थी जिसे मैंने अब से करीब 15 साल पहले अनेकों बार वृन्दावन स्थित प्राचीनतम मंदिर "बांके बिहारी" में अपने बेटे की तरककी उसके यश, कीर्ति और पति की लम्बी आयु की कामना करते हुए देखा था . स्मृति का भी कभी एक छोटा सा हँसता खेलता, सुखी और संपन परिवार था. उसके पति भारतीय सेना में कार्यरत थे और उसका एक बेटा है अभिनव जिसके बचपन में कई बार कथित (मैड वूमेन) नाम कि यही महिला स्मृति स्वयं भूखी रहकर अपने हिस्से का निवाला भी बेटे को खिला दिया करती थी यहाँ तक कि बेटे के भरपेट भोजन न करने पर वह इतनी व्याकुल और परेशान हो उठती थी, जितनी कि आज जीवन में असंख्य कष्टों को झेलने के बाद भी नहीं थी. यहाँ तक कि पति द्वारा उसके उपचार के लिए भेजे जाने वाले पैसों को भी वह कभी अपनी दवाओं और उपचार पर खर्च नहीं करती थी. वह उन सारे पैसों को बेटे को अच्छी शिक्षा और उसके भविश्य को सुधारने के लिए व्यय कर देती थी. उसके बारे में इतना कुछ जानने के बाद अचानक ही मेरे मन में श्रंखलाबद्ध तरीके से अनेकों प्रश्न आने लगे. मेरे अधिक पूछने पर उसने मुझे बताया कि उसके बेटे के अलावा उसकी एक छोटी ७ वर्षीया बेटी "अभिलाषा" भी थी. मासूम सा चेहरा, बड़ी-बड़ी आंखें और अपनी माँ के लिए हमेशा कुछ न कुछ करने का जूनून कुछ यही परिचय था मासूम और थोड़ी सी शरारती अभिलाषा का. एक वही तो थी जिसे अपनी माँ स्मृति कि सबसे अधिक चिंता रहती थी. यहाँ तक कि स्कूल से घर वापस आने के बाद वह एक पल के लिए भी माँ को अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देती थी. पूरे परिवार में शायद एक वही थी जो माँ का दुःख और उसकी परेशानियों को अच्छी तरह समझ सकती थी. उसके चंचल से मन में ढेरों अभिलाषाएं थी, वह स्वयं बड़ी होकर डॉक्टर बनकर माँ का इलाज करना चाहती थी. लेकिन समय को शायद यह सब स्वीकार नहीं था, एक दिन जब वह स्कूल जा रही थी तो उसकी माँ कि आंखें अचानक ही नम हो उठी, शायद ये किसी अनहोनी का ही पूर्वानुमान था. इस पर स्मृति ने उसे संभल कर स्कूल जाने कि सलाह दी. जैसे ही छुट्टी के बाद घर वापस आने के लिए वह सड़क पार करने लगी अचानक उसका पैर सड़क पर पड़े केले के छिलके पर पड़ा और वह फिसल कर गिर पड़ी इतने में सड़क पर दौड़ते सरपट वाहनों के बीच तेज़ी से आती एक बस ने उसे बुरी तरह कुचल दिया और इस दर्दनाक हादसे में अभिलाषा कि मौत हो गयी. इस हादसे से स्मृति को इतना गहरा सदमा लगा कि वह बेतहाशा पागलों कि तरह सड़कों पर निकल पड़ती और सड़क पर पड़े केले के छिलके, पानी कि बोतलें और पॉलीथिन इत्यादि चुनती रहती जिससे कि किसी और कि बेटी या बेटा ऐसे ही किसी दर्दनाक हादसे का शिकार न हो सके और तभी से लोगों ने उसे स्मृति के स्थान पर मैड वूमेन कहना शुरू कर दिया. इस घटना के कुछ ही दिन बाद उसके पति जिनकी पोस्टिंग इस समय LOC ( Line of control) कारगिल में थी, पाकिस्तान के खिलाफ लड़ते हुए मात्रभूमि कि रक्षा के लिए शहीद हो गए. देश के लिए कश्मीर कि बर्फीली वादियों में हमेशा के लिए मिट जाने वाले शेखर कि विधवा पत्नी को उनके शहीद होने के १० वर्ष बीतने के बाद भी लाखों कोशिशें करने के बावजूद विधवा पेंशन और शहीदों के परिवारों को मिलने वाले सामूहिक लाभ नही मिलते. अब तो उसके बेटे अभिनव ने भी स्मृति को मैड वूमेन कहकर घर से निकाल दिया है. अब वही धूल भरी जगह उसका बिस्तर है और नीली चादर ओढ़े मीलों-मील फैला आसमान उसकी चादर. पिछले कुछ दिनों से वह स्थान जहाँ वह हमेशा बैठी रहती थी खाली पड़ा है, कोई नहीं जनता कि आज स्मृति कहाँ और किस हालत में है, है भी या वह भी किसी कालचक्र का शिकार हो गयी????
नोट:- यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, लेकिन फिर भी स्मृति जैसी शहीदों कि लाखों विधवाओं और न जाने कितने ही जवान बेटों कि वृद्ध माताएं जो आँखों में आंसू लिए सड़को पर रोटी के लिए भटक रही हैं या वृद्ध आश्रम की दिवार से पीठ टिकाये सिसकियाँ ले रहीं हैं, कि कहानी को पूर्णतः चरितार्थ करती है. यदि इस कहानी को पढने के बाद एक भी जवान बेटे या बेसहारा शहीदों के परिवारों और नारी सशक्तिकरण के नाम पर लाखों झूठे वादे करने वाली केन्द्र सरकार के एक भी मंत्री, नेता या ऐसे ही गभीर विषयों पर एन जी ओ या रिअलिटी शो बनाकर लोगों की भावनाओं से खेलकर करोड़ों रूपये की फंडिंग और सिर्फ अपनी पब्लिसिटी करने वाले अभिनेताओं में से यदि किसी एक भी व्यक्ति का हृदय परिवर्तित होता है, और वह इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाता है. तो मैं समझूंगा कि मेरा इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सफल हुआ. धन्यवाद!!!
आपका ..............
******मेघव्रत आर्य******
नोट:- यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, लेकिन फिर भी स्मृति जैसी शहीदों कि लाखों विधवाओं और न जाने कितने ही जवान बेटों कि वृद्ध माताएं जो आँखों में आंसू लिए सड़को पर रोटी के लिए भटक रही हैं या वृद्ध आश्रम की दिवार से पीठ टिकाये सिसकियाँ ले रहीं हैं, कि कहानी को पूर्णतः चरितार्थ करती है. यदि इस कहानी को पढने के बाद एक भी जवान बेटे या बेसहारा शहीदों के परिवारों और नारी सशक्तिकरण के नाम पर लाखों झूठे वादे करने वाली केन्द्र सरकार के एक भी मंत्री, नेता या ऐसे ही गभीर विषयों पर एन जी ओ या रिअलिटी शो बनाकर लोगों की भावनाओं से खेलकर करोड़ों रूपये की फंडिंग और सिर्फ अपनी पब्लिसिटी करने वाले अभिनेताओं में से यदि किसी एक भी व्यक्ति का हृदय परिवर्तित होता है, और वह इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाता है. तो मैं समझूंगा कि मेरा इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सफल हुआ. धन्यवाद!!!
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